"न पुण्यमं न पापंम न सोख्यंम न दुखम। न मंत्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ।"
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित निर्वाण षटकम के ये पंक्तियाँ हमें सच्चे अर्थों में आध्यात्म का परिचय कराती हैं। यह बताती हैं कि आत्मा न तो पाप में बंधी है, न पुण्य में, न सुख में, न दुख में। आत्मा अपने आप में पूर्ण है — वही परम सत्य है।
मित्रों, आध्यात्म को समझना केवल किताबों या ज्ञान के शब्दों से नहीं हो सकता। आध्यात्म को जीना पड़ता है, महसूस करना पड़ता है। आज इस लेख में हम समझेंगे कि वास्तव में “आध्यात्म” क्या है?
आध्यात्म का अर्थ – स्वयं की खोज
अधिकांश लोग यह मानते हैं कि भगवान की पूजा करना, मंदिर जाना या अच्छे कर्म करना ही आध्यात्म है। लेकिन यह आध्यात्म के केवल भाग हैं, उसका लक्ष्य नहीं।
आध्यात्म का सच्चा अर्थ है — “स्वयं को जानना”, अपने अस्तित्व को पहचानना, और यह समझना कि हम कौन हैं?
मंदिर, तीर्थ, कथा, पूजा — ये सब साधन हैं, साध्य नहीं।
हम मंदिर इसलिए जाते हैं ताकि अपने अंदर के लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या जैसे दोषों को भगवान को समर्पित कर सकें।
मंदिर हमें यह एहसास कराते हैं कि इस जगत में कोई उच्च शक्ति कार्य कर रही है — वही शक्ति जो हमारे भीतर भी विद्यमान है।
ज्ञान का उद्देश्य – ‘खुद को भूलना’ नहीं, ‘खुद को पाना’ है
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवद गीता में अर्जुन को समस्त ज्ञान देने के बाद यही कहा —
“हे अर्जुन! इस ज्ञान का अंतिम उद्देश्य यही है कि तुम सब कुछ भूलकर अपने स्वरूप को जानो।”
अर्थात, जब तक हम बाहरी ज्ञान में उलझे रहते हैं, तब तक आत्मज्ञान से दूर रहते हैं।
सच्चा आध्यात्म तब शुरू होता है जब व्यक्ति बाहरी दुनिया की जिज्ञासाओं से हटकर अंतर्मन की यात्रा शुरू करता है — ध्यान करता है, योग करता है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है।
आधुनिक युग की भूल – आध्यात्म को जानकारी समझना
आजकल के युग में लोग सोचते हैं कि जितना ज्यादा धार्मिक ज्ञान एकत्र किया जाए, उतना बड़ा आध्यात्मिक व्यक्ति बन जाऊँगा।
वे पूछते हैं — “सीता माता की माता का नाम क्या था?” या “राधा जी के पिता कौन थे?”
परंतु ऐसे प्रश्न केवल सूचनाएँ हैं, अनुभूति नहीं।
आध्यात्म का उद्देश्य भगवान की लीलाओं को जानना नहीं, बल्कि भगवान को चित्त में अनुभव करना है।
क्योंकि जब ध्यान और साधना के माध्यम से व्यक्ति भीतर उतरता है, तभी उसे साक्षात अनुभव होता है कि भगवान उसके अंदर ही विद्यमान हैं।
सच्चा आध्यात्म – जब आप सबमें भगवान को देखें
आध्यात्म हमें यह सिखाता है कि भगवान कण-कण में बसते हैं।
फिर भी लोग परिवारों में झगड़ते हैं, संपत्ति के लिए एक-दूसरे से लड़ते हैं, नफरत करते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि वे आध्यात्म को समझते नहीं, केवल सुनते हैं।
सच्चा आध्यात्म तब होता है जब व्यक्ति दूसरों में भी उसी आत्मा को देखता है जो उसके भीतर है।
जब प्रेम, करुणा और समभाव जीवन का आधार बन जाए — वही जीवन आध्यात्मिक कहलाता है।
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निष्कर्ष – आध्यात्म की ओर एक कदम
मित्रों, आध्यात्म कोई धर्म, परंपरा या रीति नहीं है। यह तो स्वयं की यात्रा है —
- एक ऐसी यात्रा, जहाँ हम बाहरी पूजा से भीतर की साधना तक पहुँचते हैं।
- जहाँ हम भगवान को बाहर नहीं, अपने भीतर खोजते हैं।
तो आइए, इस आध्यात्मिक यात्रा में स्वयं को जानने की ओर एक कदम बढ़ाएँ।
ध्यान, योग और आत्मचिंतन के माध्यम से अपने जीवन को शांत, सरल और सुलभ बनाएं।
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आप सभी योग साधकों, ध्यान साधकों और आध्यात्म प्रेमियों को —
ॐ शांति।