आज के आर्टिकल में हम जानेंगे Actual meaning of Detachment गीता के संदर्भ में। कई सारे लोग यह मानते हैं कि Detachment का मतलब होता है कि सारी चीजों से विरक्त हो जाना, सारी चीजों का त्याग कर देना। मतलब कि मोह माया से दूर हो जाना।
लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। भगवत गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए कहा था ना कि युद्ध से भाग जाने के लिए। इसीलिए हमेशा डटे रहो और अपनी लाइफ में हमेशा आगे बढ़ते रहो। और इसी को हम बोलते हैं द आर्ट ऑफ लिविंग (The Art of Living).
दुख का असली कारण – अटैचमेंट
क्या आपको पता है कि दुख का असली कारण क्या होता है? वह होता है अटैचमेंट। जब हम बहुत सारे लोगों को, बहुत सारी चीजों को और परिस्थितियों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं और यह मान लेते हैं कि यह चीजें कभी भी हमारे जीवन से अलग नहीं होगी। वहां से अटैचमेंट की उद्घोषणा होती है और हमें जब वो चीजें दुख पहुंचाती है या हमसे दूर होती है तो फिर हमारी हालत खराब हो जाती है।
Detachment की गलत प्रैक्टिस का परिणाम
अब मैंने जो ये बात कही है यह 100% सही नहीं है। क्योंकि कई बार क्या होता है ना कि जब हम लगातार Detachment (विरक्ति) की प्रैक्टिस करते हैं, तो उसमें हमारे अंदर कर्म करने की इच्छा खत्म हो जाती है।
हमारे माइंड में आता है कि यह सारी चीजें तो खत्म हो ही जाएगी। तो कर्म करने का क्या मतलब? तो हम ऐसे ही बैठे रहते हैं। भक्ति भाव में रहेंगे। लेकिन ये कायरता है। सही ज्ञान को जानना जरूरी है। तभी आप लाइफ में आगे बढ़ पाओगे।
जीवन के पड़ाव बदलने का सही अर्थ
डिटचमेंट का मतलब होता है कि जब भी आप अपनी जिंदगी के एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव में जा रहे हो तब पीछे की सारी चीजें आपको छोड़नी है ताकि अगला पड़ाव आपके जीवन में आराम से आ सके और आप उसमें ढल सको।
लेकिन असल में लोग यह नहीं कर पाते हैं, और अभी जो चल रहा है उसी को अपने जीवन का हिस्सा मान लेते हैं। उसी को परमानेंट मान लेते हैं। और जब जीवन में ऐसी कोई परिस्थिति आती है जिसमें पिछली चीजें उनको छोड़नी पड़ती है तो लाइफ में वह बहुत दुखी होते हैं। बहुत ही उनको फ्रस्ट्रेशन महसूस होता है।
सांसारिक और आध्यात्मिक अटैचमेंट का संतुलन
सांसारिक तौर पर जीवन में थोड़ा बहुत अटैचमेंट जरूरी होता है। लेकिन उस अटैचमेंट को भी अगर आप भक्ति भाव से देखते हो तो आपका जीवन पूरा सुखमय हो जाएगा। आध्यात्मिक तौर पर अगर आप किसी व्यक्ति से प्रेम करते हैं तो यह याद रखना उसमें कोई भी एक्सपेक्टेशंस नहीं होगी और Without expectations का जो Love होता है वह हमेशा consistence होता है और वही Life-long चलेगा। इसीलिए आपको हमेशा हर रिश्ते को आध्यात्मिक तौर पर देखना चाहिए।
परिणाम की अपेक्षा – दुख का कारण
अगर हम कर्म के संदर्भ में (In terms of karma) देखें तो यहां पर श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म करना आपका अधिकार है। लेकिन रिजल्ट क्या होगा वह मेरा काम है। मतलब कि अगर आप रिजल्ट ओरिएंटेड हो तो हमेशा याद रखना आपको दुख पहुंचेगा।
क्योंकि आप लव में भी हमेशा कोई ना कोई एक्सपेक्टेशन करोगे। आप किसी भी काम में भी बहुत ज्यादा एक्सपेक्टेशन करोगे और वो काम जब पूरा नहीं होगा तो आप फ्रस्ट्रेटेड रहोगे। आप हमेशा दुखी रहोगे। इसीलिए श्री कृष्ण की बात माननी जरूरी है और लाइफ में हमेशा नो एक्सपेक्टेशंस के साथ जीना बहुत जरूरी है।
निस्वार्थ प्रेम और कर्म का वास्तविक अर्थ
निस्वार्थ भाव से निभाए गए जो रिश्ते होते हैं वो हमेशा लॉन्ग टर्म तक अच्छे से चलते हैं। विरक्ति या डिटचमेंट का मतलब यह नहीं होता कि आप दुनिया से दूर हो जाओ। उनसे भाग जाओ। इसका मतलब यह होता है कि आप प्रेम करो। आप चीजों को करो, काम करो। लेकिन बिना किसी परिणाम की चिंता के। जब परिणाम की चिंता नहीं होगी तो आप हमेशा अपना 100% प्रेम में दे पाओगे। 100% काम में दे पाओगे और 100% पूरी जिंदगी से जी पाओगे।
समर्पण और पंचभौतिक शरीर की सीमाएँ
पूर्ण रूप से समर्पित जीवन हमेशा सादगी और आनंद से भरा हुआ रहता है। लेकिन अगर आप पंचभौतिक शरीर को सब कुछ मान बैठते हो तो आपका रोना धोना हमेशा लगा रहेगा और आप कभी सुख चैन से नहीं जी पाओगे।
इस दुनिया में जो भी चीजें, जो भी अचीवमेंट, जो भी परिणाम, जो भी रिश्ते आपको मिल रहे हैं, वह सारे आप ही के कर्मों का परिणाम होते हैं। इसीलिए उनको एक्सेप्ट करो और जीवन में आगे बढ़ो।
अधिक प्रेम और अटैचमेंट से मन की अशांति
अब हम जानते हैं कि विरक्ति या डिटचमेंट हमारे जीवन में क्यों जरूरी होता है। तो भगवत गीता के संदर्भ में अगर देखा जाए तो जब भी हम किसी चीज से बहुत ज्यादा जुड़ जाते हैं, बहुत ही अत्यधिक प्रेम करने लगते हैं तो ऐसे में हमारा मन अशांत हो जाता है। क्योंकि परिणाम मिलने पर हमारे अंदर अहंकार आ जाता है और परिणाम ना मिलने पर हम बहुत ज्यादा दुखी हो जाते हैं।
विरक्ति या डिटचमेंट का अभ्यास करने से हमेशा हर चीज के बंधन से बाहर रहेंगे और डिटचमेंट के साथ अगर जिंदगी जी जाए तो आप 100% डेडीकेशन के साथ हर रिश्ते को निभा पाएंगे। हर काम को कर पाएंगे।
डिटचमेंट की Practice कैसे करें?
अब हम बात करते हैं कि इस विरक्ति का या डिटचमेंट का अभ्यास कैसे किया जाए? तो कुछ पॉइंट्स होते हैं।
सबसे पहला पॉइंट होता है कि कर्म पर ज्यादा ध्यान मत दो। धर्म पर ध्यान दो। ठीक है? अगर आप कर्म पर ज्यादा ध्यान दोगे तो धीरे-धीरे आपका ध्यान परिणाम की तरफ जाएगा और आप रिजल्ट ओरिएंटेड बन जाओगे।
लेकिन अगर आप धर्म पर ध्यान दोगे कि मेरा धर्म क्या है? धर्म का मतलब कि मेरा एक पति होने के नाते क्या धर्म है? मेरा एक पुत्र होने के नाते क्या धर्म है? मेरा एक पिता होने के नाते क्या धर्म है? यह सारे धर्म अगर आप निभाओगे तो बखूबी आप हर व्यक्ति से अच्छे से प्रेम कर पाओगे और हर व्यक्ति में आप भगवान को देख पाओगे।
आध्यात्मिक साधनाएँ और संगति का महत्व
डिटचमेंट को प्रैक्टिस करने के लिए कुछ और spiritual practices होती हैं। जैसे कि
- आप ध्यान कर सकते हो।
- आप नाम जप कर सकते हो।
- आप संत समागम कर सकते हो।
- बहुत सारे YouTube पर ऐसे वीडियोस आते हैं जैसे कि प्रेमानंद जी के वीडियोस हैं। आप उनको देख सकते हो। उनमें कई सारी ऐसी चीजें होती है जो आपके ओवरऑल पर्सनालिटी को डेवलप करेगी।
- अपनी संगति बदलो।
- अच्छे लोगों के साथ रहो।
- अच्छे लोगों का साथ दो।
- अच्छी किताबें पढ़ो, अच्छे विचार रखो।
- मैं और मेरा की भावना से दूर रहो।
इसी तरह से आप धीरे-धीरे डिटचमेंट की प्रैक्टिस कर पाओगे और अपने जीवन में आगे बढ़ पाओगे।
Detachment से मिलने वाली आंतरिक स्वतंत्रता
जब व्यक्ति के अंदर डिटचमेंट या फिर विरक्ति आती है तो वह हमेशा खुश रहता है, आनंदित रहता है। वह भीतर से पूरा शांत रहता है और वह आध्यात्मिक तरीके से अपने जीवन को जी पाता है। सबसे बड़ी बात सारी चीजों के बीच में रहकर भी वह अपने आप को स्वतंत्र महसूस करता है।
वह अपने आप को किसी भी चीज का जिम्मेदार महसूस नहीं करता है और वह हमेशा हर परिस्थिति को कृष्ण के ऊपर सौंप देता है और कृष्ण उसकी कमान संभालते हैं।
निष्कर्ष या आखरी विचार
विरक्ति कोई चाह नहीं है। वह आत्मज्ञान का उत्साह है। यह चीजों के बीच में रहकर भी किया जा सकता है। इसीलिए हमेशा चीजों के बीच में रहकर विरक्ति को प्रैक्टिस करें और अपने जीवन को बेहतर बनाएं।
कर्म करें लेकिन परिणाम के अटैचमेंट से दूर होकर, प्रेम करें लेकिन स्वार्थ से दूर होकर और जीवन को जिए लेकिन बंधनों से मुक्त होकर।
Stay happy, Stay healthy!
राधे राधे 🙏


