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ब्रह्मचर्य का अंतिम लक्ष्य क्या है? | purposes of Brahmacharya

आप सभी को ॐ। मैं धीरज पाटीदार आपका स्वागत करता हु आज के इस आर्टिकल में। आज हम एक ऐसे प्रश्न का गहनता से जवाब देंगे जिनका हर कोई आध्यत्मिक व्यक्ति जवाब जानना चाहता है। ब्रह्मचर्य का अंतिम लक्ष्य क्या है? और ये हर व्यक्ति के लिए क्यों जरूरी है? 

आज का ये आर्टिकल जो कोई भी देखेगा उसको ब्रह्मचर्य पालन में आगे किसी भी मोटिवेशन की जरूरत नही होगी।

तो चलिए शुरू करते है।

ब्रह्मचर्य एक ऐसी सच्चाई है जो आज के आधुनिक समाज में लगभग खत्म हो चुकी है। आपने भी देखा होगा की आपके आसपास कोई भी ऐसा व्यक्ति नही होगा जो भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों पर चलकर ब्रह्मचर्य का पालन करता हो। क्यों की सभी लोग ने धन दौलत, पद, प्रतिष्ठा, आदि को अपने जीवन का परम लक्ष्य मान लिया है जिससे वे अगर उसे पा भी लेते है तो भी दुखी और असहाय महसूस करते है।

ब्रह्मचर्य का अंतिम लक्ष्य क्या है? | Purposes of Brahmacharya

ब्रह्मचर्य का अंतिम लक्ष्य है अपनी चेतना का विस्तार करना। ये जानना की हम यहां पर क्यों है, कौन है जिसने हमे बनाया, क्या उसे हम देख सकते है, ऐसे तमाम प्रश्नों को जानना ही चेतना के विस्तार को प्रारंभ करता है। और इनकी शुरुआत अध्यात्म और ब्रह्मचर्य से संभव है।

ये में दावे के साथ कह सकता हु की आप जो कुछ भी जीवन में पाना चाहते है अगर पा भी लोगे तो भी खुशी सिर्फ आध्यात्म और ब्रह्मचर्य से ही मिलेगी।

आज कल जो लोग बड़ी बड़ी गाड़ियों को, बंगलो को, लड़कियों को, या पैसे को ही सिर्फ एक मात्र लक्ष्य मानकर जीवन जीते है वो हमेशा अपने जीवन से अनसेटिफाइफ रहते है। सब कुछ होने के बाद भी कुछ अधूरा रह जाता है और उसी की तलाश में वो मर जाते है। क्या आप चाहते है की ऐसी जिंदगी आपकी भी निकले। 

आप खुद सोचो की आपने जीवन मे कितनी सारी चीज़े है जो पा ली है, लेकिन उनकी खुशी अभी तक बरकरार नही रही है। ऐसा क्यों क्यू की वो जीवन का परम लक्ष्य है ही नही। परम लक्ष्य पा लेने के बाद या उसकी अनुभूत मात्र से जीवन की सारी कामनाएं और वासनाएं समाप्त हो जाती है।

दोस्तों के साथ गुलचर्रे उड़ना, या फिर pub party में जाना, सिर्फ पैसे को जीवन का लक्ष्य बनना ये सब आपके दिमाग को भ्रष्ट करते है।

आपने कई सारे बड़े सेलिब्रिटीज या कलाकारों को देखा होगा जो आज भी डिप्रेशन को जिंदगी जी रहे है जबकि उनके पास सब कुछ है जो एक आम आदमी चाहता है लेकिन फिर भी कई सारे सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर्स अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते है। ये सब कुछ ब्रह्मचर्य से दूर रहने के परिणाम है क्यू कि यही असली जीवन है। इसी से आप खुद की खोज की यात्रा आरंभ कर सकते हो। आज जितना इसमें डूबोगे उतना आनंद आएगा मेरा विश्वास करो।

हम सभी लोगो का असली अस्तित्व सिर्फ वो परम शक्ति है ये रिश्ते नाते, जाती भेद सब यही का है कुछ साथ नही जाने वाला है। इस फालतू के वहम से बाहर निकलो और ब्रह्मचर्य में रहो तभी आपकी उन्नति हो सकती है नही तो दुर्गति को प्राप्त होने के लिए तैयार हो जाओ।

हम सभी को पता है कि इस जीवन में कितना दुख है कितनी पीड़ा है तो क्या आप फिर से ऐसा ही जीवन पाना चाहते हो बोलो। अगर नही तो चेतना का विस्तार करो। खुद को जानो, खुद को हर दिन खुद से बेहतर बनाने की कोशिश करो।

आज में जो बोल रहा हु वो सब ब्रह्मचर्य के बलबूते पर बोल रहा हु और एक दिन आपका भी आएगा, जिस दिन आप भी लोगो को ऐसा बोलोगे लेकिन पहले खुद को बदलो खुद ब खुद लोग आपसे जुड़ने लगेंगे।

मेरा ये कहने का मतलब नही है की आप सब कुछ छोड़कर अपनी चेतना के विस्तार की यात्रा पर चल दो, नहीं। आपको एक बैंलेंस्ड या संतुलित जीवन जीना है। आप जो कुछ भी पाना चाहते हो करो, उसके लिए मेहनत, लेकिन एंड रिजल्ट के साथ अटैच मत रहो नही तो वो मिल भी गया तो भी कोई सुख नहीं मिलेगा और नही मिला तो बहुत ज्यादा दुखी रहोगे।

हर काम को इस भाव से करो की आप बस माध्यम हो, करने वाला कोई और है। हर कार्य को ऊपर वाले की सेवा समझकर करो ताकि आप गलत काम करने से भी बचोगे और काम भी बिना तनाव के हो जाएगा।

मेरे कहने पर एक बार बस सिर्फ एक बार खुद के उद्धार के लिए, खुद को खुश रखने के लिए, खुद को खुद से जोड़ने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करो नही तो जब जवानी हाथ से चली जाएगी तो बस पछतावा रह जाएगा।

महान लोगों और ऋषियों द्वारा ब्रह्मचर्य पर टिप्पणियां:

1. पतंजलि योग सूत्र में ब्रह्मचर्य:

पतंजलि ऋषि ने ब्रह्मचर्य को यम (योग की पहली सीढ़ी) के पाँच नियमों में एक बताया है।

"ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः" अर्थात् जब ब्रह्मचर्य दृढ़ता से स्थापित हो जाता है, तब साधक को अपार बल और तेज की प्राप्ति होती है। इस बल से वह आत्मा की खोज और ईश्वर-प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।

2. उपनिषदों में ब्रह्मचर्य:

छांदोग्य उपनिषद कहता है: "ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युं अपाग्नत" मल्तब देवताओं ने भी ब्रह्मचर्य और तपस्या के बल पर मृत्यु पर विजय पाई। इसका संकेत है कि ब्रह्मचर्य से साधक अमर ज्ञान, शाश्वत शांति और मोक्ष प्राप्त करता है।

3. स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण:

स्वामी विवेकानंद ने कहा: "ब्रह्मचर्य ही आध्यात्मिकता की रीढ़ है। जो इसको साध ले, वह जीवन में कुछ भी कर सकता है।"

वे मानते थे कि ब्रह्मचर्य के बिना आत्म-साक्षात्कार और महान कार्य असंभव हैं। उन्होंने अपने जीवन में भी ब्रह्मचर्य का कठोर पालन किया और उस ऊर्जा को विश्व को जाग्रत करने में लगाया।

4. महर्षि वेदव्यास और वाल्मीकि ऋषि:

इन महान ऋषियों ने ब्रह्मचर्य को दीर्घ तप, ध्यान और ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का मूल आधार माना। उन्होंने कहा कि ब्रह्मचर्य से मनुष्य अपनी समस्त इंद्रियों को वश में कर, आत्मा के स्वरूप को जान सकता है।

5. आध्यात्मिक दृष्टि से अंतिम लक्ष्य:

ब्रह्मचर्य का अंतिम लक्ष्य है "आत्मा और परमात्मा की एकता", जहाँ साधक अपने व्यक्तिगत अस्तित्व को त्यागकर ब्रह्म में लीन हो जाता है।

इस आर्टिकल संबंधित हमारा यूट्यूब वीडियो:

आज के लिए बस इतना ही मिलते है अगले आर्टिकल में। 

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आप सभी को ॐ।

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